Tuesday, September 19, 2017

गुजरात की राजनैतिक नसबंदी, हम एक ( राज्य) हमारे दो ( राजनैतिक दल).


गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला ने 'जन विकल्प' के साथ अपना गठजोड़ सार्वजनिक कर दिया है. दुनिया को पता चल गया की गंगाधर ही शक्तिमान है. यानी जन विकल्प की संकल्पना के पीछे शंकर सिंह वाघेला ही थे. लेकिन गुजरात का इतिहास देखें तो इस नए दल की राह आसान नहीं है. यह नया दल किसी एक निश्चित दल का आंकड़ा बिगाड़ेगा या फिर अपना वजूद बनाने के लिए भारी मशक्कत करता दिखाई देंगा. कम-से-कम गुजरात का इतिहास तो यही कह रहा है.

 
गुजरात की अलग राज्य के रुप मे स्थापना हुई तब से लेकर अब तक. यानी पिछले 57 सालों में गुजरात मे कई दल बने और खत्म हुए. बीजेपी और कांग्रेस को छोड़ अन्य कोई भी दल गुजरात में राजनीति नहीं कर पाया. इंदु चाचा की जनता परिषद से लेकर 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में केशुभाई पटेल तक कई दिग्गज नेताओ ने नए दल बनाए, चुनाव भी लड़े. लेकिन प्रमुख पार्टी बनकर कोई भी नहीं उभर पाया. पिछले 50 सालों में जनता परिषद, नूतन गुजरात जनता परिषद, कीमलोप, राष्ट्रीय जनता पार्टी, जनता दल - गुजरात, राष्ट्रीय कांग्रेस, लोक स्वराज्य मंच, सुराज्य परिषद, युवा विकास पार्टी समेत एक दर्जन से ज्यादा दल बने लेकिन आज इनका नामोनिशान कहीं पर भी नहीं है.

  • 1956 में महा गुजरात आंदोलन शुरू हुआ, तमाम प्रमुख दल कांग्रेस के खिलाफ थे. 1957 में महागुजरात जनता परिषद दल बनाया गया. चुनाव भी लड़ा गया, लेकिन जीत हासिल नहीं हुई.
  • नवनिर्माण आंदोलन के बाद पूर्व मुख्यमंत्री चिमन भाई पटेल ने 1975 में किसान मजदूर लोक पक्ष की स्थापना की थी. जबरदस्त टक्कर देने के बावजूद महज 12 सीटों पर यह दल चुनाव जीत सका.
  • 1990-91 के दशक में चिमन भाई पटेल ने जनता दल - गुजरात के नाम से एक पार्टी बनाई. BJP के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़े .लेकिन यह पार्टी भी आज कहीं नहीं दिख रही.
  • हाल फिलहाल में नई पार्टी में शामिल हुए शंकर सिंह वाघेला ने 22 साल पहले महागुजरात जनता पार्टी और राष्ट्रीय जनता पार्टी के नाम से नया राजनीतिक दल खड़ा किया था. कांग्रेस के समर्थन से सत्ता में भी आए थे. लेकिन इस दल को भी कांग्रेस में शामिल हो जाना पड़ा.
  • 1982 में कांग्रेस से नाराज हुए माधवसिंह सोलंकी ने राष्ट्रीय कांग्रेस के नाम से एक दल बनाया था. चार सांसद और 5 विधायकों ने मिलकर यह दल को आगे बढ़ाने की कोशिश की. लेकिन 1985 के चुनाव में यह दल कहां गया किसी को आज तक पता नहीं चला.
  • गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू भाई पटेल ने 1990 में लोक स्वराज मंच के नाम से राजनैतिक दल बनाया था लेकिन नतीजा कुछ नहीं.
  • 1994 में पूर्व वित्त मंत्री दिनेश शाह ने सुराज्य परिषद नाम के संगठन की घोषणा की थी लेकिन उसका भी वही हाल हुआ जो अन्य दलों का हुआ है.
  • वहीं प्रजा समाजवादी पक्ष के पास गुजरात में तीन विधायक रहे. लेकिन यह तीनो विधायक 1971 में कांग्रेस में शामिल हो गए.
  • बीजेपी से अलग हुए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोसने वाले पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाई. साल 2012 में जोरदार चुनाव लड़ा. लोगों को ऐसा लग रहा था कि यह दल बीजेपी के लिए खतरा बनेगा. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ महज दो ही विधायक जीत पाए.

यह राजनैतिक नसबंदी गुजरात की जनता ने की है. जिसमे नए दल वोटकटवा बनकर रह जाते है.


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उत्तर मुंबई की मलाड सीट पर एक रस्साकशी भरा जंग जारी है। इस सीट पर इस समय किसका पलड़ा भारी है? गुजराती मिडडे में छपा हुआ मेरा लेख।