तमाम अखबार मे बीजेपी ने
जिस तरह से विश्वास का मत जिता उसपर टिप्पणीया छपी है. जब विश्वास का मत पारीत हो
रहा था उस समय मै महाराष्ट्र विधानसभा की पत्रकार गैलरी मे मौजुद था. तमाम
घटनाक्रम बडे नाटकीय अंदाज मे हुए.
इस घटनाक्रम की रुपरेखा एक
दिन पहले ही बन चुकी थी जिसका सबुत है विधानसभा के सचीव द्वारा एक दिन पहले तमाम
विधायको को भेजा गया एजंडा. 11 तारीख की रात यानी विश्वास मत प्रस्ताव के एक दिन
पहले विधायको को जो एजंडा भेजा गया था उसमे विपक्ष के नेता के चयन या मुद्दा नहीं
था. लेकिन देर रात करीब 10.30 बजे एक नया एजंडा बना जो एसएमएस के माध्यम से तमाम
विधायको को भेजा गया. इस नए एजंडा के पहले क्रम पर था स्पीकर का चयन, दुसरे क्रम
पर था विपक्ष के नेता का चयन और तीसरे क्रम पर था विश्वास मत प्रस्ताव. विधायको को
पहले भेजे हुए एजंडा मे विपक्ष के नेता के चुनाव को कोइ उल्लेख नहीं था. यह बदलाव
किसने करवाया और क्यों यह आज भी रहस्य है. इस मामले पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री
ने जांच ओर्डर की है.
देखने मे छोटी लगने वाली यह
'विपक्ष के नेता' के चयन की बात इतनी टैकनिकल है कि कोताही बरतने पर विश्वास
मत के दौरान बीजेपी को परेशानी झेलनी पड सकती थी. 10 तारीख को यदि नवनिर्वाचीत स्पीकर
एजंडा के अनुसार विपक्ष के नेतापद का चयन विश्वास मत के प्रस्ताव से पहले करते तो
उसके परिणाम बीजेपी को विश्वास मत के समय भुगतने पडते. मसलन, विपक्षी नेता की मांग
पर वोटींग होता, विपक्षी नेता की मांग पर तमाम नेताओ के भाषण होते और यह तमाम चीज
बीजेपी को अडचन मे ला सकती थी.
लेकिन एसा कुछ भी नहीं हुआ.
हाउस शुरु होते ही पहले अध्यक्ष का चयन हुआ और फिर तमाम नेताओ ने अध्यक्ष को बधाई
देते हुए भाषण किए. आभार प्रदर्शन समाप्त होने पर अध्यक्ष के एक भी मिनट न गंवाते
हुए घोषणा कर दी कि पहले विश्वास मत पारीत होगा और फिर विपक्षी नेता चुना जाएगा.
स्पीकर के इस फैसले पर कोंग्रेस और शिवसेना कुछ बोलना चाहते थे. लेकिन समय गंवाए
बीना सत्ता मे बैठे बीजेपी के नेता आशीष शेलार ने विश्वास मत पेश कर दिया. शोरशराबे
के बीच स्पीकर ने घोषीत कर दिया कि मतदान ध्वनी से होगा और पहली घोषणा हुई की
जिन्हे सरकार के समर्थन मे मत देना हो वह हां कहे. यह बात सुनते ही बीजेपी के तमाम
विधायक खडे हुए और हां..... हां..... चिल्लाने लगे. इस समय एनसीपी के तमाम विधायक
चुप बैठे रहे. किसी ने हां नहीं कहा. जब यह शोर शराबा चल रहा था तब कोंग्रेस और
शिवसेना के विधायक अपनी विपक्ष के नेतापद के चयन की मांग को लेकर स्पीकर के पास जा
रहे थे. हां.... की आवाज खत्म होने पर स्पीकर ने कहा - विरोध मे... और इसके जवाब मे किसी ने ( कोंग्रेस
और शिवसेना ने भी ) नां.... नहीं कहा. एक क्षण मे फैसला सुनाते हुए स्पीकर ने कहा
कि हां की आवाज मुझे सुनाई दी और विश्वास मत पारीत हुआ.
जैसे ही अध्यक्ष ने विश्वास
का मत पारीत कर दिया कोंग्रेस और शिवसेना के विधायक ने वोटींग की मांग की, लेकिन
एजंडा आगे जा चुका था और अब वोटींग का सवाल ही नहीं था. मसलन, बहुमती साबीत हो गई.
यह बात समज मे आते ही कोंग्रेस और शिवसेना ने भारी हंगामा खडा कर दिया. स्पीकर ने
हाउस को एडजोर्न कर दिया. मामला खत्म....
यह पुरा वाकया 5 मिनट के
भीतर खत्म हुआ. लेकिन टैक्नीकल बारीकी देखे तो बीजेपी ने काम चालाकी से कर लिया
है. विपक्ष का नेता पहले नहीं चुनकर शिवसेना को संवैधानिक अधिकार से अलग रखा. वहीं
एनसीपी ने 'हां' भी नहीं कहा और 'ना' भी नहीं कहा. यानी टथस्त रहते हुए उसने सरकार बनवा दी.
वहीं विपक्ष के नेता के चयन की मांग मे मसरुफ शिवसेना और कोंग्रेस को इस बात का
खयाल ही नहीं रहा की राजनैतिक दांवपेच उनके हाथ से खिसक रहा है. सही समय पर वोटींग
न मांगने से एनसीपी की भूमिका गुलदस्ते मे रही. वहीं बीजेपी के एनसीपी के साथ क्या
संबंध है उसको लेकर ओन रिकार्ड कुछ न आ सका.
उफ... कितनी बडी राजनैतिक
गलती. खैर, सरकार बन चुकी है. अब 6 महिने से पहले अविश्वास का प्रस्ताव पेश नहीं
हो सकता. तब तक फडनवीस सरकार कैसा काम करती है यह देखना दिलचस्प होगा. खासतौर पर 8
दिसंबर से शुरु हो रहा नागपुर अधिवेशन बीजेपी की अल्पमत सरकार कैसे सफलतापुर्वक
काटती है और प्रस्ताव कैसे पारीत करवाती है यह आने वाला समय ही बताएगा.