बांद्रा पूर्व के
उपचुनाव मे निर्णायक भूमिका रही ओवैसे बंधुओ की.
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लगातार हिन्दू विरोधी बयानों के चलते हिन्दू समुदाय एकजुट होकर शिवसेना को वोट
दिया.
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मुस्लिम मतो का बंटवारा हुआ.
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मुस्लीम पोकेट्स में पिछले चुनाव के मुकाबले कम मतदान हुआ.
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बीजेपी के मतदाताओ ने भी शिवसेना को वोट दिया.
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शिवसेना अपने मतदाताओं को अपने साथ बनाए रखने में कामयाब रही.
नारायण राणे मुंबई
की बांद्रा पूर्व सीट पर 20 हजार मतों से हारे है और एमआयएम के 11000 मत नारायण
राणे के खाते में जोड़ दिए जाए तबभी नारायण राणे का आंकड़ा विजयी आंकडे ( 51000 ) को
पार नहीं कर रहा. एसे में यह हार किसकी यह सबसे बडा सवाल है. आखीर नारायण राणे पूरजोर
ताकत लगाने पर भी क्यों नहीं जीत पाए.
मीडिया इस हार को नारायण
राणे की हार बता रहा है. टी.वी. मीडिया में ‘नारायण राणे चुनाव हारे’ यह सुर्खियां देखने मिल रही है. क्योंकि नारायण राणे यह कॉग्रेस
में एक बड़ा नाम है. वास्तव में यह हार नारायण राणे से अधिक कॉग्रेस की हार है. इस
सीट पर चुनाव प्रचार के लिए कॉग्रेस के तमाम स्थानीय नेताओं के अलावा एनसीपी नेता
शरद पवार ने भी राणे के लिये प्रचार किया था. कॉग्रेस की प्लानिंग जोरदार रही.
मुंबई के कॉग्रेसी विधायको को अलग अलग बूथ सौंपे थे. मसलन एक विधायक-एक बूथ. इसके
अलावा मीडिया से बात करने के लिए आधा दर्जन नेता हरदम मौजुद रहते थे.
लेकिन तह में
देखें तो कॉग्रेस का खेल ओवैसी बंधुओ ने खराब किया. ओवैसी बंधु पिछले 10 दिनो से
मुंबई की बांद्रा सीट पर प्रचार कर रहे थे. उनका मकसद था मुस्लिम वोटो को पार्टी
के साथ जोड़े रखना. लेकिन शायद ऐसा नहीं हो पाया. एम.आय.एम को पिछले चुनाव में 25000 वोट मिले थे
और अबकी बार महज 11000 मत मिले है. एमआयएम के मत भले ही कम हुए हो लेकिन ओवैसी
बंधुओ की भूमिका अहम रही. ओवैसी बंधु जिस प्रकार हिंदुओ के खिलाफ खुलकर बोल रहे थे
उससे हिन्दू मत एकजुट हुए. यह उपचुनाव मुस्लिम बनाम हिन्दू की शक्ल ले चुका था.
शिवसेना हिन्दू पार्टी है और इसीलिए तमाम बीजेपी- शिवसेना के मत एकजुट हो गए.
ओवैसी बंधु अपने वोटो को भी न बचा सके क्योंकि मुंबई के मुस्लिम कॉग्रेसी नेता मुस्लिम
मतो को कॉग्रेस की तरफ मोड़ने में कामयाब रहे थे. यदि ओवैसी बंधु इस प्रकार
हिन्दूओ के खिलाफ खुलकर नहीं बोलते तो आज कॉग्रेस का यह हाल नहीं हुआ होता.
इस चुनाव से यह बात
भी साबित हो रही है कि कोंग्रेस की छवी लोगो के बीच सुधरी नहीं है. लोग अभी भी कॉग्रेस
को वोट देने से जिझक रहे है. जो 31000 मत कोंग्रेस को मिले है वो केवल मुस्लिम
इलाको से मिले हुए मत है. नारायण राणे यह महाराष्ट्र की राजनीति का हारा हुआ नाम
है और कहावत है कि ‘हारा हुआ जुवारी दोगुना खेलता है’. इसी तर्ज पर नारायण राणे उपचुनाव में किस्मत आजमा चुके.
इस चुनाव में सिर्फ राणे ही नहीं कॉग्रेस ने भी अपनी किस्तम आजमाई. इस लिटमस टेस्ट
का यहीं नतीजा है कि लोगो का भरोसा कॉग्रेस से उठ चुका है और बीजेपी शिवसेना
गठबंधन का प्रभाव अभी भी मतदाताओं के सिर चढ़ कर बोल रहा है.