Sunday, January 29, 2017
Friday, January 27, 2017
Thursday, January 26, 2017
खुल गया सस्पैंस - अब होगा सीधा मुकाबला.
आख़िरकार टूट गया बीएमसी मे बीजेपी और शिवसेना का
२२ साल पुराना गठबंधन. पार्टी के कार्यकर्ताओं के सम्मेलन मे मुंबई मे उद्धव ठाकरे
ने इस बारेमे औपचारिक घोषणा कर दी. पिछले लंबे समय से बीएमसी चुनाव को लेकर सीटों
के बँटवारे पर दोनो पार्टीओ के बीच तनातनी बढ़ गई थी.
उद्धव ठाकरे ने बीजेपी पर आरोपो की झडी लगाई
·
पिछले २५ सालों से बीजेपी के साथ गठबंधन का
वख्त जो बीता है वह शिवसेना ते लिए सड़ा हुआ समय है.
·
सरकार मे पारदर्शिता नहीं है.
·
शिवसैनिक उन्हे ताक़त दे तो वह विरोधीओ के
दाँत तोड़ देंगे.
·
बीजेपी ने बीएमसी चुनाव मे ११४ सीटें माँग
कर शिवसेना का अपमान किया है.
यह दुसरा मौक़ा है जब शिवसेना और बीजेपी अलग-अलग
चुनाव लड़ेंगे. पहले विधानसभा चुनाव मे भी अलग-अलग चुनाव लड़े थे. लेकिन तब युती
तोड़ने का कदम बीजेपी ने उठाया था. अबकी बार शिवसेना ने यह कदम उठाया है.
बीजेपी का पलटवार -
जैसे ही शिवसेना ने गठबंधन तोड़ने की घोषणा की
बीजेपी के नेताओं ने शिवसेना को मुँहतोड़ जवाब देना शुरु कर दिया.
कोंग्रेस और एनसीपी की नसीहत -
कोंग्रेस और एनसीपी ने शिवसेना को चुनौती देते
हुए कहा है कि यदि शिवसेना अपनेआप को बहादुर मानती है तो वह केन्द्र और राज्य सरकार दोनो ही जगहो पर क्यों सत्ता मे हिस्सेदार है.
सबसे बड़ा सवाल –
बीएमसी मे सत्ता किसकी होगी?
मुंबई की लडाई अब सबसे तेज दौर मे आ पहुंची है. कुल
मिलाकर मुंबई किसकी इसके लिए शिवसेना ने सबसे बडा दांव खेल दिया है.
अब सवाल यह भी है कि
राज्य सरकार का क्या होगा? क्या शिवसेना
आनेवाले दिनो मे महाराष्ट्र सरकार को दिया अपना समर्थन वापसी ले लेगी?
“सस्पैंस में लाभ है” - बीएमसी चुनाव का नया समीकरण.
बीएमसी
चुनाव में सीटों के बटवारे को लेकर शिवसेना और बीजेपी चर्चा में उलझे हुए हैं. कहीं यह
पूरा एक गेम प्लान तो नहीं? ऐसा लग रहा है कि शिवसेना और बीजेपी चर्चा के नाम पर विरोधियों को उलझा रहे हैं. दोनों
ही दल गठबंधन तोड़ने की बात नहीं कर रहे बल्कि सही प्रस्ताव का इंतजार कर रहे हैं.
संभ्रम
से क्या लाभ ?
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प्रसिद्धी मिलती रहे
·
कार्यकर्ता दल के साथ जुडे रहे ( टिकट की आस में)
·
कार्यकर्ता का मनोबल बना रहे
·
विपक्ष को अपने उम्मीदवार तय करने में दिक्कत आए
·
टिकट की आस में दोनो पक्षो में अन्य दलो के
नेताओ और कार्यकर्ताओं का आना जारी है
कार्यकर्ता क्या चाहते हैं –
·
बीएमसी चुनाव में शिवसेना, बीजेपी, कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता
गठबंधन नहीं चाहते
·
लेकिन महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, एनसीपी के कार्यकर्ता गठबंधन चाहते
है.
नेता क्या चाहते है –
·
शिवसेना
और बीजेपी ने नेता गठबंधन चाहते है क्योंकि उन्हे राज्य में साझा सरकार चलानी है.
·
मुंबई
कांग्रेस के नेता मुंबई में एनसीपी के साथ गठबंधन नहीं चाहते. लेकिन महाराष्ट्र
स्तर के नेता मुंबई मे एनसीपी के साथ गठबंधन चाहते है.
शिवसेना और बीजेपी के बीच अबकी बार बीएमसी के चुनाव मे
गणित क्यों बिगडा ?
·
यह सारा गणित विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद बिगड़ा है
·
मुंबई में कुल 36 विधानसभा की सीटे हैं
जिसमें से बीजेपी ने 15 सीटों पर जीत दर्ज की।
·
वही शिवसेना को 14 सीटों पर जीत मिली
·
लेकिन बीएमसी में इससे बिल्कुल उल्टा गणित है. शिवसेना पिछले बीएमसी चुनाव में 71
सीटों पर जीत पाई थी
·
वही बीजेपी को महज 31 सीटों पर जीत मिली थी
·
सवाल यह है कि अब कौनसी सीट कौन रखें
·
बीजेपी उत्तर मुंबई,
ईशान्य मुंबई और बाकी के बचे हुए
मुंबई के अलग-अलग हिस्सों से चुनिंदा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है.
·
शिवसेना
के मौजूदा पार्षद ईशान्य मुंबई और उत्तर मुंबई से अच्छी संख्या में चुनकर आए हैं.
·
ऐसे
में शिवसेना के लिए यह संभव नहीं है कि वह अपने मौजूदा पार्षदों की सीटें काट दें.
क्योंकि इससे पार्टी के भीतर भूचाल मच जाएगा.
·
वही
जिन सीटों पर विधानसभा चुनाव में बीजेपी को भारी बहुमत मिला है. वह यह सीटें नहीं छोड़
सकता वरना उसके पास से जनसमर्थन चला जाएगा.
युती होने पर क्या समीकरण
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युती
होने पर बीजेपी और शिवसेना से टिकट इच्छुक कार्यकर्ताओ का अन्य दल की ओर पलायन
शुरु हो जाएगा.
·
बीजेपी
और शिवसेना का वोटर गठबंधन की सुरत में साझा उम्मीदवार को वोट न देते हुए एमएनएस या
अन्य दल के उम्मीदवार को वोट कर सकता है.
युती टूटने पर समीकरण
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अच्छे उम्मीदवार के
चुनाव जीतने की उम्मीद बढ जाएगी
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मतदाता पार्टी और चेहरा
दोनो को देखकर वोट करेंगे
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कम वोट पाने पर भी चुनाव
जीता जा सकता है
कौन किसके साथ
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कोंकणी
मराठी माणुस शिवसेना के साथ दिख रहा है
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उत्तर
भारतीय और गुजराती, मारवाडी बीजेपी के साथ दिख रहे है
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दलीत
वोट का ज्यादा तर झुकाव बीजेपी - शिवसेना की ओर है
·
मुस्लिम
मतदाता बटे हुए है
Wednesday, January 18, 2017
Thursday, January 12, 2017
मुंबई मे चुनावी घमासान
मुंबई मे चुनावी बिगुल बज चुका है. बीएमसी चुनाव का एलान हो गया है. इसीके
साथ देश की आर्थीक राजधानी पर किसका कब्जा होगा इसे लेकर महाराष्ट्र की
तमाम पार्टीयां एक दुसरे से भीड रही है. इस चुनाव के कई अहम पहलु है...
अहम बातें
बीएमसी चुनाव - किसके लिए क्या मायने रखता है.
शिवसेना
फिलहाल बीएमसी मे पक्षीय बलाबल क्या है......
अहम बातें
- बीएमसी का बजट देश के कई छोटे राज्यो से बडा है. बीएमसी का बजट 37 हजार करोड है.
- गोवा, असम, नागालैंड, मणिपुर, मिझोरम, त्रीपुरा, सीक्कीम राज्य से बड़ा है बीएमसी का बजट.
- पिछले 20 वर्षो से मुंबई महानगर पालीका पर शिवसेना बीजेपी का गठबंधन शासन कर रहा है.
- मुंबई महानगर पालिका पर कब्जा होने का मतलब है देश की आर्थीक राजधानी पर कब्जा होना.
बीएमसी चुनाव - किसके लिए क्या मायने रखता है.
शिवसेना
- मराठी माणुस का असली नेतृत्व करने का दावा करने वाली शिवसेना के लिए यह सबसे बडी लडाई है.
- यहां हारने का मतलब है कि महाराष्ट्र की राजनिती मे सबसे बडी धोबी पछाड.
- मुंबई मे हारने से महाराष्ट्र की राजनिती मे शिवसेना का दबदबा कम होगा.
- तमाम स्थानिय निकाय चुनावो मे बीजेपी को भारी बहुमत मिला है. एसेमे महाराष्ट्र मे अपनेआप को बडा दिखाने के लिए शिवसेना के पास यह आखरी अवसर है.
- नोटबंदी के फैसेल के बाद देश की आर्थीक राजधानी मुंबई नगरी के लोग पहली बार वोट करेंगे. यह बात सही है कि स्थानिय मुद्दे चुनाव मे छाए रहेंगे लेकिन तबभी यह मुद्दा चुनावी मुद्दा जरुर बनेगा.
- बीजेपी और शिवसेना के बीच आए दीन तूतू-मैमै चलती रहती है. एसमे इस चुनाव मे बढत मिलने का मतलब है शिवसेना को झोरदार मुक्का मारना
- बीएमसी पर कब्जा करने के बाद ही बीजेपी का यह दावा सही होगा की वह महाराष्ट्र की नंबर वन पार्टी है.
- कोंग्रेस के लिए यह चुनाव अपनी नाक बचाना है. पिछले 20-20 सालो से विपक्ष मे बैठने वाली कोंग्रेस पार्टी का दावा है कि मुंबई की जनता असुविधा के चलते त्रस्त है.
- गनोटबंदी के बाद वह देश की आर्थीक राजधानी इस पार्टी को बताएगी की वह कोंग्रेस के साथ है या नहीं.
- लोकसभा और विधानसभा चुनाव हारने के बाद सत्ता मे वापसी के लिए बीएमसी चुनाव जितना जरुरी.
- राज ठाकरे के पास अपनी पार्टी का अस्तीत्व बनाए रखने का यहीं एकमात्र चुनाव बचा है. महाराष्ट्र की अन्य तमाम जगहो पर हार का मुंह देख रही महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के लिए बीएमसी चुनाव करो या मरो है.
- मुंबई मे वह कोंग्रेस और समाजवादी पार्टी का विकल्प बन सकते है या नहीं.
फिलहाल बीएमसी मे पक्षीय बलाबल क्या है......
- शिवेसना के पास 89 कोर्पोरेटर
- बीजेपी के पास 32कोर्पोरेटर
- कोंग्रेस के पास 51कोर्पोरेटर
- एनसीपी के पास 14कोर्पोरेटर
- महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के पास 28 कोर्पोरेटर
- समाजवादी पार्टी के पास 8 कोर्पोरेटर
- शेतकरी कामगार पक्ष के पास 1 कोर्पोरेटर
- अपक्ष की संख्या 4 है.
- कुल 227 कोर्पोरेटर है.
Monday, January 9, 2017
NFU Doctrine and India’s Civil Nuclear Program
-- Dr. B. B. Singh* --
On 12 th October 2016 during a meeting organized in Mumbai by a NGO (Forum for
Integrated National Security} for “Dialogue with Raksha Mantri”, this writer reminded
the Minister that in Lok Sabha 2014 pre-election manifesto the BJP promised “to study
afresh India's nuclear doctrine, revise and update it to evolve an independent Strategic
Nuclear Program, relevant to the challenges of current times-- -- “ but there has been no
attempt in this direction despite the western neighbor repeatedly threatening us with
tactical nuclear weapons. On the contrary, we have been enthusiastically following the
UPA-I & II lay-out of No-First- Use (NFU) of our nuclear weapons. In response to the
comment, the Hon’ble Defense Minister assured the public that it is only 2 years since
BJP came to power. There are still 3 more years ahead. A month later on November 10 at
the release function of Brig. (Retd.) Kanwal’s book “The New Arthashastra - A Security
Strategy of India,” the Defense Minister referring to No First Use (NFU) policy of the
country, said “we are a responsible nuclear power and I will not use it irresponsibly”.
“Why should I bind myself? I should say I am a responsible nuclear power and I will not
use it irresponsibly. This is my (personal) thinking,” Even the personal views of the
Defense Minister ought to be meaningfully pregnant. It is true that his views are in
contrast with the existing views of our Prime Minster and the Home Minister as well as
that of Foreign Ministry. However such views are subject to revision as the present
circumstances are now demanding. The Defense Minister’s views have been well
appreciated by the Prime Minister since 2 days later speaking in Goa on November 12,
the Prime Minister Narendra Modi complemented the Defense Minister Mr. Parrikar
calling him as one of the jewels in his team.
It is also being opined by some experts that a shift in India’s NFU policy would affect
country’s civil nuclear program since the NSG waiver granted to India in 2008 may be
withdrawn. It could also block India’s entry into this elite club. Additionally it would
further adversely affect India’s relations with Pakistan and China. These are unfounded,
imaginary and ill-conceived fears.
India’s civil nuclear activities relate largely to power generation which is heavily dependent on
the NSG waiver granted to India in 2008 as it permits India to trade in nuclear materials and
technologies. India has already entered into bilateral agreements with more than 12 countries
including US, UK, Australia, Kazakhstan and Japan-being the latest addition. All of these
agreements are formulated only for civil nuclear cooperation and are silent on NFU. The NSG
waiver is likewise also silent on this issue. It emphasizes non-testing of nuclear devices and
stipulates that, among other conditions, India to “continuing its unilateral moratorium on nuclear
testing and its readiness to work with others towards the conclusion of a multilateral Fissile
Material Cutoff Treaty”. India’s voluntary moratorium on nuclear testing has become a binding
under NSG waiver. However “zero-yield” tests would be necessary and also permissible if India
intends to modernize its arsenal. It is significant to recall that under section 110(10) of The Hyde
Act 2006 which enabled the US President to enter into the Indo-US Nuclear agreement, India
may conduct nuclear tests below certain level of explosion defined as "any device designed to
produce an instantaneous release of an amount of nuclear energy from special nuclear
material that is greater than the amount of energy that would be released from the
detonation of one pound of TNT.” This value is not non-negotiable considering that
under the Comprehensive Test Ban Treaty (CTBT) United States has favoured for itself
accepting a measure of 4 lbs or 1.8 kg TNT yield as "zero". The United Kingdom would
favour a "zero" yield at 100 lbs TNT while Russia wants a level of 10 tons and France
between 100 and 200 tons TNT. China seems to favour PNEs for the same reason. It is
known that such sub-critical tests are already being secretly conducted by the US since 1997
and its last underground sub-critical test 27 th in series named "Pollux" was conducted on
5 th December 2012 at Nevada National Security Site. The Russians are also known to
have been conducting sub-critical tests at Novaya Zemlya Test Site.
NFU is India’s self imposed condition. No other nuclear weapon State except China has
declared No-First Use policy. All those nations have left their options open to use the
nuclear weapons judiciously and responsibly in the interest of their country. India’s
Nuclear Doctrine 2003 in art. 2.4 states “-India will not be the first to initiate a nuclear
strike, but will respond with punitive retaliation should deterrence fail.” Under its art. 2.3(b) it
further clarifies that “Any nuclear attack on India and its forces shall result in punitive
retaliation with nuclear weapons to inflict damage unacceptable to the aggressor.” Silently
ingrained in “damage unacceptable to the aggressor” is a message of “a massive retaliatory
damage” engulfing also civilian population. It would be unethical and politically unadvisable
particularly in case of Pakistan where civilian population has relatives in India. This may also be
difficult to implement since the international political pressure may build against any such action
during the intervening period. Present Indian nuclear strategy based only on NFU and massive
retaliation therefore needs rethinking.
* The author is a practicing lawyer and a retired scientist formerly with Department of Atomic
Energy (B.A.R.C.), Mumbai and International Atomic Energy Agency, Vienna
Thursday, January 5, 2017
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उत्तर मुंबई की मलाड सीट पर एक रस्साकशी भरा जंग जारी है। इस सीट पर इस समय किसका पलड़ा भारी है? गुजराती मिडडे में छपा हुआ मेरा लेख।
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