बीएमसी चुनाव का प्रचार जबसे शुरु हुआ है तभी से शिवसेना के मुखपत्र सामना मे सिर्फ शिवसेना का प्रचार छप रहा है.
क्यों न हो प्रचार?
सामना यह उद्धव ठाकरे का ख़ुद का अख़बार है.
यह शिवसेना का मुखपत्र भी है.
इस अख़बार ने हमेशा ही पार्टी की बात को शिवसैनिको तक पहुँचाया है.
इस नाते यह प्रचार पत्रिका हुई - अख़बार कैसे हुआ?
यह अख़बार की कैटेगरी मे दर्ज होने से उसे काग़ज़, सरकारी योजना के तहत अन्य चीजे मिल रही है.
सवाल यह है कि यदि सामना किसी पुलिटीकल पार्टी का मुखपत्र है तो फिर उसे सरकारी रियायत कैसे मिल सकती है?
सामना अकेला नहीं है.
तरुण भारत - बीजेपी
जया टी.वी - एआईएडीएमके
सन टी.वी - डीएमके
इस तरह के कई पब्लिकेशन अलग अलग पुलिटीकल पार्टी के लिए प्रचार का काम करते है. क्यों ना तमाम पब्लिकेशन के उपर चुनाव आयोग कदम उठाते हुए इन्हें चुनाव के दौरान बंद कर दे.
अख़बार यदि किसी एक उम्मीदवार के बारेमे ख़बर छापता है तब उसे पेइड न्यूज़ की कारवाई झेलना पड़ती है. एसेमे पुलिटीकल दल से जुड़े पब्लिकेशंस पर पाबंदी क्यों नहीं.
अबकी बार बीजेपी ने इस मामले की शिकायत चुनाव आयोग से की है. यह एक अच्छा मौक़ा है. बीजेपी के कंधे पर बंदूक़ रखकर 'फ़ायर' कर देना चाहिए. सिर्फ सामना ही क्यों तमाम पुलिटीकल पार्टी के साथ जुड़े पब्लिकेशन पर कारवाई होनी चाहिए.
सवाल यह है कि क्या चुनाव आयोग इतनी हिम्मत दिखा पाएगा ?
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